March 26, 2023

400 साल पुराने अटरिया मंदिर की अनोखी है कहानी, आज भी खड़ा है य़ह दुनिया का अनोखा पेड़

रुद्रपुर उधमसिंह नगर में एक औद्योगिक शहर है। हरिद्वार की तरह ही यहां भी कई बड़ी औद्योगिक कंपनियां स्थित हैं। इसके साथ ही यहां कई मंदिर भी स्थित हैं। आज हम बात कर रहे हैं अटरिया मंदिर की। यह मंदिर रहस्यों से भरा हुआ है जिसके लिए यह मंदिर पूरे देश में प्रसिद्ध है। अत्रिय मंदिर का मंदिर रुद्रपुर के जगतपुरा में स्थित है।

हर साल चैत्र की नवरात्रि के दौरान यहां एक विशाल मेला लगता है जिसमें देश भर से श्रद्धालु आते हैं और ज्यादातर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से दूर-दूर से आते हैं।

सच्चे दिल से मांगने पर पूरे होते है काम

अटरिया माता के मंदिर का इतिहास करीब 400 साल पुराना है। यह मंदिर माता अटरिया का मंदिर है। यहां की मान्यता है कि जो भी भक्त यहां माता के दरबार में पूरी आस्था के साथ मनोकामना करता है, वह अवश्य पूरी होती है।

अटरिया मंदिर में माता शीतला, माता भद्रा काली, माता सरस्वती और भगवान शिव और भैरों की पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि माता अटरिया में नि:संतान दंपतियों और विकलांगों की मनोकामना पूरी होती है।

मान्यताओं की माने तो माता के दरबार से कोई भी भक्त खाली हाथ वापस नहीं आता है। इस मंदिर में छोटे बच्चों के मुंडन की परंपरा भी बहुत प्रसिद्ध है। यहां हर साल लाखों छोटे बच्चों का मुंडन किया जाता है।

यहां हर साल अटरिया मंदिर में मेले का भी आयोजन किया जाता है। यह मेला इतना भव्य होता है कि इसे देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। यह मेला चैत्र के नवरात्रों के दौरान 10 दिनों तक आयोजित किया जाता है।

मेले की शुरुआत अटरिया माता के डोले के आगमन के साथ होती है। और नवरात्रों की समाप्ति पर माता के डोले के प्रस्थान पर इस मेले का समापन होता है। मान्यताओं के अनुसार अटरिया माता का मंदिर 400 साल पुराना है।

प्राचीन काल में इस मंदिर की मूर्तियों को मुगल आक्रमणकारियों ने एक कुएं में फेंक दिया था। फिर उसके बाद 15वीं शताब्दी में राजा रुद्रचंद ने राज्य जीता।

कहा जाता है कि एक बार राजा रुद्र शिकार के लिए निकले तो उनके रथ का पहिया एक जगह जमीन में धंस गया। जिस पेड़ के नीचे राजा रुद्र ने माता से आज्ञा प्राप्त की थी वह आज भी अत्रिय माता के मंदिर में मौजूद है।

इसकी खास बात यह है कि इस पेड़ की प्रजाति के बारे में किसी को कोई अंदाजा नहीं है। इस प्राचीन वृक्ष में बरगद, पीपल, नीम, आम और बरगद सभी एक साथ दिखाई देते हैं। जिसके कारण इसे पंच वृक्ष कहा जाता है

अधिक समय लगने पर राजा वहीं विश्राम करने लगा। तभी उन्हें स्वप्न में माता अत्रिय की वाणी सुनाई दी। माता अत्रिय ने राजा को बताया कि जिस स्थान पर रथ का पहिया अटक गया, उसी स्थान के नीचे मूर्तियों को गाड़ दिया गया है।

Vaibhav Patwal

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