कई जागरुकता क्रियाकर्मों के बाद हमारे देश में मासिक धर्म या मासिक धर्म का विषय एक ऐसा वर्जित है। आज भी महिलाओं को शर्म आती है। वहीं सैनिटरी पैड की बात करें तो इसके पैकेट को काले रंग की पॉलीथिन में लपेटकर हाथ में थमा दिया जाता है, कई बार तो दुकानदार की तरफ देखने की भी हिम्मत नहीं होती।
ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान भेदभाव का सामना करना पड़ता है, लेकिन इससे सटे देहरादून के गांव में एक लड़की रहती है, जो महज 20 साल की उम्र में महिलाओं के मासिक धर्म से जुड़ी समस्याओं को दूर करने का काम कर रही है।
हर्बर्टपुर के इंटर कॉलेज में पढ़ने वाली प्रिंसी वर्मा आम लड़कियों की तरह ब्यूटीशियन का कोर्स करने प्रधानमंत्री कौशल विकास केंद्र गई थीं, लेकिन वहां से वह एक आइडिया लेकर लौटीं।
प्रिंसी अपना खुद का व्यवसाय शुरू करना चाहती थी, लेकिन यह इतना आसान नहीं था, खासकर ग्रामीण इलाकों में। खैर, किसी तरह जानकारी जुटाकर प्रिंसी ने खादी ग्रामोद्योग से सैनिटरी नैपकिन यूनिट का प्रोजेक्ट पास करवा लिया।
इसके बाद वह कर्ज के लिए बैंक के चक्कर लगाने लगी। शुरुआत में निराशा हुई, लेकिन बाद में उन्हें 10 लाख की कर्ज राशि की मंजूरी मिल गई। जिसके बाद छात्र ने सैनिटरी नैपकिन बनाने की इकाई लगाई। तीन महीने की मेहनत के बाद यह छात्र एक लाख रुपये का कारोबार कर रहा है. यह नैपकिन बनाने, पैकिंग और मार्केटिंग में 11 लोगों को रोजगार भी प्रदान कर रहा है।
प्रिंसी के पिता राजेश वर्मा और मां संगीता वर्मा सेलाकुई की फैक्ट्रियों में काम करते हैं। उनकी बेटी द्वारा किए जा रहे प्रयासों से उन्हें भी राहत मिली है। प्रिंसी की सफलता में प्रधानमंत्री कौशल विकास केंद्र का विशेष योगदान है। सेंटर के संचालक विपिन नौटियाल का कहना है कि प्रिंसी कुछ अलग करना चाहती थीं, इसके लिए केंद्र ने उनकी मदद की।