आपको अगर बैंक में कोई काम है तो आप उसे कैंसिल भी कर सकते है क्योकि सरकारी बैंक, छेत्रिय ग्रामीण बैंक या फिर रीजनल रूलर बैंक या पुराणी पीढ़ी के कुछ पुराने प्राइवेट बैंक के करीब कुछ 9 लाख अधिकारी और कर्मचारी दो दिनों से हड़ताल पर है कर्मचारी पब्लिक सेक्टर बैंको के निजीकरण का विरोध कर रहे है दरअसल इस साल के शुरू में सरकार ने दो पब्लिक सेक्टर बैंक के प्राइवेटाइजेशन के बारे में जानकारी दी थी की इन बैंकों का निजीकरण बैंकिंग संशोधन बिल 2021 के तहत होना है जिसे संसद के शीतकालीन सत्र में पेश होना है हलाकि अब सरकारी सूत्रों के मुताबिक शीतकालीन सत्र सरकार इस बिल को लाने के फ़िलहाल मूड में नहीं दिख रही।
23 दिसंबर को शीतकालीन सत्र खत्म हो रहा है हलाकि सरकार ने अब तक ये नहीं बताया है की वो किन दो पब्लिक सेक्टर का निजीकरण करने का प्लान बना रही है हड़ताली बैंक यूनियन नेताओं का दावा है की उनकी हड़ताल को कांग्रेस डीएम और शिवसेना समेत कई विपक्षी पार्टियों का समर्थन मिल चूका है बैंक हदल के पहले दिन देश भर में सरकारी बैंकों का काम काज प्रभावित रहा आखिर भारतीय बैंक।
कर्मचारी संग के महासचिव ने तो दावा किया की पहले दिन की हड़ताल से 20.4 लाख चैक का किलयेरंस अटक गया है इससे 18600 करोड़ रुपये का बैंकिंग कामकाज प्रभावित हुआ हड़ताली बैंक कर्मचारी और अधिकारी संगठनो का कहना है की हड़ताल का असर 17 दिसंबर को पूरी तरीके से दिखेगा उनका कहना है की हड़ताल का ये मतलब नहीं है की सभी कर्मचारी और अधिकारी घर पर बैठ जाए इसका मतलब ये है की वो ब्रांच तो आएंगे लेकिन सम्मान्य काम काज करने के बजाये ब्रांच के बहार बेथ कर विरोध प्रदर्शन करेंगे ।
तो सरकार की बैंक के निरीकरण के नीतियों के खिलाफ नारे भी लगाएंगे इससे ग्राहकों को असुविधा भी हो सकती है आपको बता दे की ये हड़ताल आखिर भारतीय बैंक अधिकारी परिषद् अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संग पर राष्टीय बैंक कर्मचारी संगठन जैसी 9 बैंकों के मंच UFBU ने बुलाई है इससे पहले सरकार ने 2019 में IDBI बैंक की ज्यादा तर हिस्सेदारी LIC को बेच कर बैंक का निजीकरण किया था और साथ ही पिछले चार सालों में 14 सरकारी बैंकों का विलय किया है।
लेकिन सवाल ये उठता है की ये मोदी सरकार बैंक को बेच क्यों रही है दरसलो मोदी सरकार बार बार ये कह रही है की सरकार का काम बिज़नेस करना नहीं है पिछले तीन सालों में ही सरकार ने सरकारी बैंकों के ही हालत को सुधारने के लिए डेढ़ लाख करोड़ की पूंजी लगाई है और एक लाख करोड़ से ज्यादा की रकम रेकपिटलिज़शन बॉन्ड के जरिये दी है सरकारी बैंकों की गिनतियाँ 28 से 12 हो चुकी है सरकार कमजोर बैंकों को दूसरे बड़े बैंकों के साथ मिल देना चाहती है और बाकी को बेचना चाहती है।
इससे सरकार को बार बार बैंकों में सरकारी खजाने की पूंजी लगा कर उनकी सेः सुधारने की चिंता से मुक्ति मिल जाएगी लेकिन हड़ताली कर्मचारियों का समर्थन कर रहे कई इकॉनमी एक्सपर्ट सरकार के इस कदम को सही नहीं कह रहे है उनका कहना है की बैंकों के निजीकरण से लोगो की बैंकों में सेविंग असुरक्षित हो जाएगी।