कारगिल दिवस उत्तराखंड राज्य के लिए भी बेहद खास है, इस जंग में इस धरती के कई जवान शहीद भी हैं| देहरादून के शहीद विजय सिंह भंडारी जो 17 गढ़वाल राइफल्स में तैनात थे। कारगिल युद्ध शुरू होने पर उन्होंने शादी कर ली। शादी को 10 दिन ही हुए थे जब उनकी छुट्टी रद्द कर दी गई और उन्हें ड्यूटी पर बुलाया गया। युद्ध की खबर से परिवार बेचैन था। मां ने बताया कि यूनिट में पहुंचकर वहां पहुंचने की सूचना दी थी। इसके बाद सीधे उनकी शहादत की खबर मिली।
4 बच्चों की मां रामचंद्री ने बताया कि शादी समारोह का जश्न फीका नहीं पड़ा था कि उनके बेटे की छुट्टी रद्द कर दी गई और उन्हें वापस बुला लिया गया| कहा कि उनके बेटे की सेना में भर्ती होने की बड़ी इच्छा थी। अपनी तीन बेटियों की शादी के बाद अब घर में अकेली रह रही है, नम आंखों से सबकुछ बताती है सबकुछ| घर में इकलौता बेटा होने और परिवार के सदस्यों ने सेना में शामिल होने से इनकार कर दिया, इसलिए विजय ने परिवार से सेना में शामिल होने की खबर छिपाई। भर्ती होने के कुछ दिनों बाद उन्होंने घर में यह खुशखबरी सुनाई थी। मां बताती है कि विजय की शहादत के बाद पत्नी घर छोड़कर चली गई।
मां रामचंद्री देवी बताती हैं कि उन्हें अपने बेटे की पेंशन का 20 फीसदी ही मिलता है| विजय की शहादत के बाद उनके पिता ने अपने खर्चे पर शामपुर स्थित अपने आवास पर शहीद गेट के साथ-साथ पंचायती मिलन केंद्र भी बनवाया था। आज भी वह अपने खर्चे से दरवाजे की मरम्मत करती हैं। विजय के पिता भी फौज में थे। 2006 में उनका निधन हो गया। शहीद की मां का कहना है कि उन्हें दुख है कि सरकार शहीद के माता-पिता को सम्मान नहीं देती है। कहा कि पत्नी के साथ-साथ माता-पिता को भी सरकार की ओर से सम्मान मिलना चाहिए। दूसरी ओर जब कारगिल युद्ध शुरू हुआ तो देहरादून के बरोवाला निवासी शहीद सुरेंद्र सिंह दो महीने से छुट्टी पर था| इन छुट्टियों के दौरान सुरेंद्र अपनी मां को बाघा बार्डर, स्वर्ण मंदिर जैसी कई जगहों पर घूमने ले गए थे। छुट्टी खत्म होने के बाद सुरेंद्र ड्यूटी पर वापस चला गया।
शहादत से पांच दिन पहले सुरेंद्र का फोन आया और उन्होंने कहा कि वह सुरक्षित हैं, लेकिन इसके बाद अगले कुछ दिनों के बाद सुरेंद्र की शहादत की खबर मिली। उनकी शहादत में एक स्मारक भी बनता है और आज भी उनकी मां उनकी याद में प्रेमनगर में बने स्मारक की सफाई करने जाती हैं| कारगिल दिवस के 22 साल बाद भी बेटे की याद ने मां-बाप की आंखों में आंसू ला दिए| मां गोमती देवी बताती हैं कि उनका बेटा सुरेंद्र उनसे बहुत प्यार करता था। बचपन से ही उनकी इच्छा सेना में भर्ती होने की थी। इसलिए जब 1994 में उन्हें भर्ती कराया गया तो वह घरवालों को बिना बताए भर्ती कराने चले गए। जब वे शहीद हुए तब उनकी आयु मात्र 22 वर्ष थी।